तुम जो यूँ अपनी जुल्फें संवारती हो | Love Poems


तुम जो यूँ बार-बार अपनी जुल्फें संवारती हो,
क्यों मुझे अपनी गुस्ताख नज़रों से मारती हो ♥♥

तुम जानती हो अब हम दो किनारे किसी दरिया के हैं,
मेरे दिल के जख्म अभी भरे नहीं है,
क्यों तुम उन्हें छूकर फिर उभारती हो ♥♥

मेरी किस्मत में अश्क ही लिखे है शायद,
क्यों मुझे तुम यूँ पुकारती हो ♥♥


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