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रब्त क्या है परिंदों से पूछो | M S Mahawar
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चश्म-ए-दिल में जब अश्क मेरे मिले जाँ सभी में ही अक्स तेरे मिले बज़्म में दूर से चमक रहे जो दिल में उनके मुझे अँधेरे मिले दर्द का ज़िक्र था जहाँ जहाँ पे उस वरक़ पे निशान मेरे मिले रब्त क्या है परिंदों से पूछो पेड़ सूखे मगर बसेरे मिले छोड़ आया हूँ दिल मिरा घर पर हर तरफ़ ही मुझे लुटेरे मिले दर्द-ए-तन्हाई से मरा है कोई लोग दिन रात उस को घेरे मिले ये ख़ज़ाना मिला मुहब्बत में तेरे ख़त कमरें में बिखेरे मिले चाहकर भी निकल सके न कोई साए ज़ुल्फ़ों के जब घनेरे मिले हो परेशान निकले जब घर से राह तन्हाइयों के डेरे मिले साथ मेरे ये रात रहने दो मिलना हो गर जिसे सवेरे मिले
वस्ल के दिन | Ghazal | Urdu Shayari | Hindi Love | M S Mahawar
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उसकी आँखों में कोई ख़्वाब नहीं क्या पियाले में ही शराब नहीं फूल तो और भी हैं लेकिन दोस्त उसके जैसा कोई गुलाब नहीं हाल सूखे दरख़्त से पूछो अपना साया भी दस्तियाब नहीं पहले बोसे में इश्क़ फीका लगा हाँ आख़िरी का कोई जवाब नहीं हिज्र की आग से बचा न कोई अश्क़ ही अश्क़ है बस आब नहीं वस्ल के दिन गिने हैं उंगली पर हिज्र का कोई भी हिसाब नहीं तू नहीं याद भी नहीं तेरी दश्त-ए-दिल में कोई सराब नहीं देख जिसको हो जाते थे पागल सामने है अब इज़्तिराब नहीं है अदब जानना तबीअत भी हाल पूछा है बाज़याब नहीं
मुहब्बत के नुक़साँ | Ghazal | M S Mahawar
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बड़ा ही जो तुम मुस्कुराने लगी हो है कुछ बात जो तुम छिपाने लगी हो इरादा है क्या दूर जाने का मुझसे ज़ियादा ही तुम पास आने लगी हो बड़ी ही मशक्कत से आँसू ये निकले यहाँ तुम मुझे चुप कराने लगी हो अभी तो नज़र भर ही देखा तुम्हें और मुहब्बत के नुक़साँ बताने लगी हो निकलती नहीं थी कभी घर से बाहर गली में मिरी आने जाने लगी हो थी उम्मीद तुम से निगह-दारी की आज नज़र मुझसे ही तुम चुराने लगी हो तिरा रोकना टोकना क़समें दे कर मुहब्बत मिरी आज़माने लगी हो हुआ वस्ल में जान कुछ भी न तुमसे अभी हिज्र के दिन गिनाने लगी हो
शाएरी के साथ | Ghazal in Hindi | Hindi Poetry | M S Mahawar
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उस दश्त का जो राब्ता है तिश्नगी के साथ तू ख़ुश रहे दुआ है मगर इक कमी के साथ तुझ से बिछड़ के हम मरे तो जाँ नहीं मगर फ़िर कर लिए ये फासले और ज़िंदगी के साथ ढूँढ अब शजर पहाड़ परिन्दें हवा कहीं उकता गया है आदमी अब आदमी के साथ वो सिलसिला अजीब था तन्हाई का मिरी सबके रहे क़रीब मगर दुश्मनी के साथ प्यार से सुनाना कोई कड़वी बात भी मुझको खिलाते थे वो नमक चाशनी के साथ हर बात के लिए तू मना लेता है मुझे है मसअला यही तिरी इस दोस्ती के साथ रोना न धोना झगड़ा न कोई शिकायतें वो रिश्ता तोड़ भी गया तो सादगी के साथ सब सोचते रहे कि मोहब्बत ही छोड़ दी पकड़ा गया वो कृष्ण उसी बाँसुरी के साथ गुज़रा जो कोई अपने भी घर फ़िर नहीं गया है कौनसा ये रिश्ता तिरी उस गली के साथ एक एक याद तेरी पिघलती है बर्फ़ सी क्या ही मज़ा शराब का है तीरगी के साथ उठकर चला गया वो कहीं और बज़्म से अच्छा नहीं हुआ ये मिरी शाएरी के साथ
दश्त में प्यास | pyar ki shayari
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इक नज़र आर - पार कर देखें रूह को जिस्म उतार कर देखें कौन सुनता है ख़ामुशी की सदा आँखों से भी पुकार कर देखें खेल ये सीधी नज़रों का नहीं दोस्त क्यूँ न आँख एक मार कर देखें प्यार अगर दे मज़ा उदासी का क्यूँ न हम दिल ये हार कर देखें हिज्र के बाद एक और ये हिज्र दश्त में प्यास मार कर देखें आँसुओं में छुपा हो राज़ कोई कौन वो दरिया पार कर देखें है कोई और अक्स आइने में धूल थोड़ी उतार कर देखें हो अकेला उदास सच भी कहीं दुनिया को दरकिनार कर देखें हर शजर को गले लगाते चल अक्स-ए-ख़ुशबू-ए-यार कर देखें हो कोई हाल क़ैस जैसा फ़िर दिल की बात आश्कार कर देखें
इज़्तिराब नहीं | love shayari photo | romantic shayari in hindi
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