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चश्म-ए-दिल में जब अश्क मेरे मिले जाँ सभी में ही अक्स तेरे मिले बज़्म में दूर से चमक रहे जो दिल में उनके मुझे अँधेरे मिले दर्द का ज़िक्र था जहाँ जहाँ पे उस वरक़ पे निशान मेरे मिले रब्त क्या है परिंदों से पूछो पेड़ सूखे मगर बसेरे मिले छोड़ आया हूँ दिल मिरा घर पर हर तरफ़ ही मुझे लुटेरे मिले दर्द-ए-तन्हाई से मरा है कोई लोग दिन रात उस को घेरे मिले ये ख़ज़ाना मिला मुहब्बत में तेरे ख़त कमरें में बिखेरे मिले चाहकर भी निकल सके न कोई साए ज़ुल्फ़ों के जब घनेरे मिले हो परेशान निकले जब घर से राह तन्हाइयों के डेरे मिले साथ मेरे ये रात रहने दो मिलना हो गर जिसे सवेरे मिले
A very lovely Sher! :)
जवाब देंहटाएंGhalib provides a consolation on this...
Tere waade par jiye hum, to ye jaan jhooth jaana.
Ke, khushi se mar na jaate, agar aitbaar hota?
Lovely sher..THanks for sharing :)
हटाएंlaajawaab hai.. :)
जवाब देंहटाएंShukriya yogesh :)
हटाएंwonderful!
जवाब देंहटाएंTHanks Sir :)
हटाएंBohot khoob! Being a shayara myself, I love your blog. :)
जवाब देंहटाएंShukriya! Thank you so much for your love and appreciations :)
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