मोहब्बत | ROCKSTAR 2011


इक उम्र तुझे दी है,
मेरे हिस्से में तो
तेरी इक याद भी नहीं,

हर शाम निकलता हूँ घर से
तन्हाइयों से मिलने,
तक़दीर में शायद
तेरी-मेरी मुलाक़ात ही नहीं,

हर रोज़ दम तोड़ रही है,
हसरतें मेरी,
तेरी बाहों में दम निकले
नसीब में वो रात ही नहीं,

मेरा हाल देखकर शायद
मोहब्बत जान जाये
कि मोहब्बत क्या है,
मैं मोहब्बत को हासिल हो जाऊं
शायद मोहब्बत की ये औक़ात ही नहीं |




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