क्या कोई आयेगा कभी | Love Poems


पूछता रहता हूँ मैं इन खामोश सितारों से,
रूह को छूती हुयी इन बहारों से,
पूछता रहता हूँ मैं फूलो को चूमती हुयी इन तितलियों से,
घटाओं से बातें करते इन परिंदों से,
क्या कोई आयेगा कभी,
जो लब्ज़ मैं सुनने को तरसता रहा,
क्या वो गीत कोई मेरे लिए गुनगुनायेगा कभी ♥••♥

खुद से बातें करता हूँ मैं इन तनहा रातों में,
तड़प कर चीख उठता हूँ इन गहरे सन्नाटो में,
क्या कोई मिलेगा कभी गुमनामी की और जाते इन रास्तो में,
क्या कोई आयेगा कभी,
फिर हाथ पकड़ कर मुझे चलना सिखायेगा कोई,
खो दिया है मैंने खुद को एक झूठी चाहत की हसरत में,
क्या मुझे फिर से जीना सिखायेगा कोई ♥••♥

सुकून ढूँढ़ते रहे ज़िन्दगी भर,
खुद को ढूँढ़ते हुए अब भटक रहे हैं दरबदर,
क्या फिर मंजिल तक कोई पहुंचायेगा कभी,
क्या इन दिल के टुकड़ों को कोई फिर मिलायेगा कभी,
ग़म के अंधेरो में आँखों से धुंधली होती तस्वीर को,
फिर अपनी आँखों में बसायेगा कोई,
क्या सुकून भरे लम्हे कोई साथ बितायेगा कभी,
क्या मुझे ज़िन्दगी से फिर कोई मिलायेगा कभी ♥••♥


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टिप्पणियाँ

  1. Wow...beautiful words...makes me think of soft moments...makes me go down memory lanes.
    Had to tell you this now...i have read four of yours and they were all great. Am becoming a fan of your kalam your lekhani now.
    Will keep visiting you so pls pls keep composing. Am saving this now...to read it to my beloved...in softer moments cause sigh !! wish i could compose as well but i can't. But i am glad you can. :) :) :)

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    उत्तर
    1. That's very humbling.Thank you so much for stopping by my blog. Your comment means a lot to me. I am overwhelmed by your inspiring response to this poem. I hope I live up to all your expectations in the future too :)

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