शाएरी के साथ | Ghazal in Hindi | Hindi Poetry | M S Mahawar
उस दश्त का जो राब्ता है
तिश्नगी के साथ
तू ख़ुश रहे दुआ है मगर इक कमी
के साथ
तुझ से बिछड़ के हम मरे तो जाँ
नहीं मगर
फ़िर कर लिए ये फासले और ज़िंदगी
के साथ
ढूँढ अब शजर पहाड़ परिन्दें हवा
कहीं
उकता गया है आदमी अब आदमी के
साथ
वो सिलसिला अजीब था तन्हाई का
मिरी
सबके रहे क़रीब मगर दुश्मनी के
साथ
प्यार से सुनाना
कोई कड़वी बात भी
मुझको खिलाते
थे वो नमक चाशनी के साथ
हर बात के लिए
तू मना लेता है मुझे
है मसअला यही तिरी
इस दोस्ती के साथ
रोना न धोना झगड़ा न कोई
शिकायतें
वो रिश्ता तोड़ भी गया तो सादगी
के साथ
सब सोचते रहे कि मोहब्बत ही छोड़
दी
पकड़ा गया वो कृष्ण उसी बाँसुरी
के साथ
गुज़रा जो कोई अपने भी घर फ़िर
नहीं गया
है कौनसा ये रिश्ता तिरी उस गली
के साथ
एक एक याद तेरी पिघलती है बर्फ़
सी
क्या ही मज़ा शराब का है तीरगी
के साथ
उठकर चला गया वो कहीं और बज़्म
से
अच्छा नहीं हुआ ये मिरी शाएरी
के साथ
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