तेरा मिलने का वादा । M S Mahawar
चाँद भी सिर्फ़ आधा क्या होगा
तेरा मिलने का वादा क्या होगा
थोड़ा तो ठीक है मगर जानाँ
झूठ इतना ज़ियादा क्या होगा
काज़ल आँखों में गहरा ही नहीं आज
हल्का है रंग-ए-बादा क्या होगा
बस मुलाक़ात एक बोसे पे ख़त्म
जाम बिल्कुल ही सादा क्या होगा
वस्ल की बात सिर्फ़ अमल नहीं कुछ
दिल-लगी बे-मुरादा क्या होगा
फ़ोन उठाने से डरते हो मेरा
मरने का और इरादा क्या होगा
उड़ती जुल्फ़ें तिरी बिसात कोई
दिल मिरा ये पियादा क्या होगा
ये हसीं चेहरा और चाँद सा हुस्न
शक्ल और ये लबादा क्या होगा
कोई दुश्मन नहीं जो वार करे
तीर नज़रें मबादा क्या होगा
माफ़ी लायक नहीं तिरी गलती
मेरा क़ल्ब-ए-कुशादा क्या होगा
*क़ल्ब-ए-कुशादा - उदार दिल
*मबादा - कहीं ऐसा न हो
*लबादा - कपड़े
*बादा - शराब
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