वस्ल के दिन | Ghazal | Urdu Shayari | Hindi Love | M S Mahawar
उसकी आँखों
में कोई ख़्वाब
नहीं
क्या पियाले
में ही शराब नहीं
फूल तो
और भी हैं
लेकिन दोस्त
उसके जैसा
कोई गुलाब
नहीं
हाल सूखे
दरख़्त से
पूछो
अपना साया
भी दस्तियाब
नहीं
पहले बोसे
में इश्क़ फीका लगा
हाँ आख़िरी
का कोई जवाब नहीं
हिज्र की
आग से बचा न कोई
अश्क़ ही
अश्क़ है बस आब नहीं
वस्ल के
दिन गिने हैं उंगली पर
हिज्र का
कोई भी हिसाब नहीं
तू नहीं
याद भी
नहीं तेरी
दश्त-ए-दिल में
कोई सराब
नहीं
देख जिसको
हो जाते थे पागल
सामने है
अब इज़्तिराब
नहीं
है अदब
जानना तबीअत
भी
हाल पूछा
है बाज़याब
नहीं
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