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रब्त क्या है परिंदों से पूछो | M S Mahawar
चश्म-ए-दिल में जब अश्क मेरे मिले जाँ सभी में ही अक्स तेरे मिले बज़्म में दूर से चमक रहे जो दिल में उनके मुझे अँधेरे मिले दर्द का ज़िक्र था जहाँ जहाँ पे उस वरक़ पे निशान मेरे मिले रब्त क्या है परिंदों से पूछो पेड़ सूखे मगर बसेरे मिले छोड़ आया हूँ दिल मिरा घर पर हर तरफ़ ही मुझे लुटेरे मिले दर्द-ए-तन्हाई से मरा है कोई लोग दिन रात उस को घेरे मिले ये ख़ज़ाना मिला मुहब्बत में तेरे ख़त कमरें में बिखेरे मिले चाहकर भी निकल सके न कोई साए ज़ुल्फ़ों के जब घनेरे मिले हो परेशान निकले जब घर से राह तन्हाइयों के डेरे मिले साथ मेरे ये रात रहने दो मिलना हो गर जिसे सवेरे मिले
wah bhai wah !! Kya khoob likha hai !! Broken heart is it?
जवाब देंहटाएंTHanks :)
हटाएंwah.................
जवाब देंहटाएंTHanks For Liking :)
हटाएंदो लाइन परन्तु लाजवाब
जवाब देंहटाएंTHanks.
हटाएंBeautiful poetry as always, I am inspired MS, I have nominated you for the very inspiring blog award, hope you accept it, you can view your nomination here https://www.indiblogger.in/indipost.php?post=428262
जवाब देंहटाएंTHank you so much for such an inspiring comment as always. Thanks for nominating me. It's means a lot to me. I am overwhelmed. THanks once again :)
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