तिरे हिज़्र | Adhuri Mohbbat


गुलाब चुभने लगे हैं,
अब काँटों से मुहब्बत की जाय,

वस्ल होता तो आँखों से पीते,
तिरे हिज़्र में मैखानों में पी जाय ।


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