काश ! कहीं ऐसा होता | Hindi Poetry




काश ! कहीं ऐसा होता
कि तेरी मुस्कराहट को देखे बिना ये सुबह ना होती और
ना ही फिर हमने ये तनहा दिन गुजारा होता ♥♥

काश! कहीं ऐसा होता
कि तेरी घनी जुल्फों की छाँव में हम बैठे होते और
सूरज को देखे बिना इस ढलती शाम का इशारा होता ♥♥

काश! कहीं ऐसा होता
की तू मेरे साथ होती और उस काली रात में
चाँद से पहले मेरी चांदनी का दीदार होता
और फिर पूरी रात तेरी बाँहों की पनाहों में मेरी ये आँखे
और ये तड़पता दिल सोता ♥♥

काश! कहीं ऐसा होता
कि सजदे में तुझे दुआ में मांगते वक़्त
तेरा भी हाथ मेरे हाथो से जुड़ा होता
तो खुदा भी मेरी दुआ के इंतज़ार में खड़ा होता ♥♥

काश! कहीं ऐसा होता
कि सावन की उस रिमझिम बारिश में तेरा आँचल भीगा होता
और तेरी उन भीगी जुल्फों का क्या दिलकश नजारा होता ♥♥

काश! की इस दिल में
मजबूरियों का सागर न होता
तो ना ही मैंने कभी देखा किनारा  होता
मैं छीन लाता तुझे दुनिया से
जो तुने मुझे एक बार भी पुकारा होता  ♥♥

काश! कहीं ऐसा होता
की तेरे मेहँदी लगे हाथो में दिखाई देता हुआ
मेरा ही चेहरा होता
तेरी मांग में मेरे नाम का सिंदूर होता
तेरी बाँहों में मेरी बाँहों का हार होता,
मेरी जिंदगी में कभी काली घटाओ का पहरा ना होता
जो मेरे साथ ये तेरे चाँद से चेहरे सा नूर होता ♥♥

काश! कहीं ऐसा होता
की तेरे-मेरे साथ को किस्मत ने ना नकारा होता
काश! ये किस्मत ही ना होती
तो आज तू मेरी होती
और मैं तेरा होता ♥♥


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